बच्चे को गलती करने दें और उन्हें स्वयं सिखने दें | मुझे याद है मेरे पिता हम तीनो बहनों को अपने स्वयं के फैसले लेने देते थे जब हम छोटे थे तो | जैसे की क्या पहनना है , कहा छुट्टी मानाने जाना है और फिर अपने पसंद के विषय चुनने से लेकर अपना जीवन साथी चुनने तक | वह मानते थे की यह सबसे बेहतर तरीका है बच्चो को उनके फैसलों के लिए ज़िम्मेदार और आत्मनिर्भर बनाने का |
पर जैसा आपने अक्सर देखा होगा माता पिता अपने बच्चो को कई चीजों से बचाने की कोशिश करते रहते है | शायद चोट लगने से या असंगति में पड़ने से (धौंसिया बच्चे ) , आग और रसोई के अन्य चीजों से खेलने से रोकते है | पर हम यह नहीं समझ पाते की इससे बच्चे की स्वयं के निर्णय लेने की शमता में रुकावट आती है और उनमे दर पैदा होता है |
तो इस बात का ध्यान रखें की उन्हें ‘हाँ ‘ या ‘नाँ’ सिखाने की बजाये हम उन्हें ‘सही’ या ‘गलत’ सिखाएं | उन्हें गलत निर्णयों के परिणाम समझाएं | ‘आग के समीप मत जाओ’ कहने के बजे उन्हें समझाए की ‘आपका हाथ जलेगा और आपको चोट लग जाएगी ‘ . और देखा जाये तो एक दो बार उन्हें चोट लगने दें अगर वे आपकी ना सुने तो | यह थोडा कठोर ज़रूर लगता है पर वे ज़रूर सीखेंगे |
उन्हें परिवार के छोटे छोटे निर्णयों में शामिल करें | उनकी वास्तविक राय लें | आप स्वयं अचंभित हो जाएंगे की कैसे वे कुछ परिस्तिथियों पर कितनी बेहतर तरीके से प्रतिक्रिया देते है | जब आप उन्हें उनके निर्णय लेने देंगे, वे सही और गलत के बिच की दुरी खुद समझ जाएँगे |
तो अगली बार जब आप अपने बच्चे को एक सुरक्षित गलती करते देखें तो उन्हें रोके नहीं , करने दें | उन्हें देखें और समझने दें की जीवन क्या है | मैं यह समझती हूँ की गलतिय और असफलता हमें संवारती है | तो उन्हें कुछ गलतियाँ करने दें और उन्हें आत्मनिर्भर बन्ने दें | यह उन्हें जीवन में अपने निर्णय लेने को सक्षम बनाएगा |
मैं जानती हु इसका मतलब होगा की आप उन्हें अक्सर चोट लगते देखेंगे पर इसी तरीके से तो हम सब सीखें हैं|
WHAT DO YOU THINK?